जीवन एक यात्रा है - Lesson 9
एक साथ चलना
जब आप एक मसीही बन गए, तो आप ने परमेश्वर के साथ चलना शुरू क्र दिया. यह प्रतिदिन का काम था जिसमे पाप की आपके जीवन से पकड़ कम होती गयी और आप और ज्यादा यीशु जैसे बनते गए. परन्तु कुछ दिन दुसरे दिनों से भिन्न होते है, विशेष तौर पर जब कठिन बातें आप के जीवन में होती है. यह बुरी बातें क्यों होती है? क्या मैं परमेश्वर से कुछ रख सकता हूँ यदि इससे मेरी सहायता हो सके कि मैं पीड़ा से बच सकूं? जब मैं पाप को अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में आने की अनुमति देता हूँ, तो क्या इसके कुछ परिणाम होते है? इसका क्या अर्थ है कि यीशु “मुक्तिदाता” और “प्रभु” है?

एक साथ चलना
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अपने परिवर्तन के अनुभव को फिर से देखने., यह हमेशा एक अच्छा विचार है कि आप अपने परिवर्तन के अनुभव को पुन देखें. आप क्या सोचते हैं कि क्या हुआ जब आप यीशु मसीह के चेले बन गए? क्या आप किसी भी बात के प्रति अस्पष्ट है? हो सकता है कि आप ने कुछ गलत समझ लिया हो? क्या ऐसा कुछ हुआ जिसके लिए आप जानते नहीं थे?
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जब आप परमेश्वर के साथ अपनी यात्रा में ठोकर खाते हैं. यदपि परमेश्वर की सामर्थ आप में काम कर रही है, वह आपकी यीशु जैसा बनने में और भी ज्यादा सहायता कर रही है, आप ठोकर खायेंगे. यह आपके नये विशवास का आनंद दूर करने के विषय में नहीं नहीं है; यह आपको उस आनंद के लिए तैयार करने के विषय में है जो कि आत्मिक बढ़ोतरी का है और यह आपके आगे है. परमेश्वर यह जानता है और वह चकित नहीं होता है और इससे उसके समर्पण पर जो कि आपके प्रति है कोई परभाव नहीं पड़ता है. पाप क्या है? क्या परीक्षा पाप है? आप कैसे बता सकते है कि आपने पाप किया है और आप इसके लिए दुखी है? क्या वह क्षमा करता है? क्या आप साफ़ हो सकते है?
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एक रिश्ते में एक महत्वपूर्ण बात है बातचीत, जिसमे आप सुनते है और बोलते है. परमेश्वर ने हम से दो बुनियादी तरीकों से बात की है, श्रृष्टि के द्वारा और अपने वचन बाइबिल के द्वारा. “प्रेरणा”, “अधिकार”, और “कैंनिसिती” शब्दों का क्या अर्थ है? क्या हम बाइबिल पर भरोसा क्र सकते है? मैं कैसे परमेश्वर को सुन सकता हूँ जब मैं उसके वचन को पढ़ता हूँ? क्या मुझे पढ़ने के इलावा कुछ और भी करने की आवश्यकता है?
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एक तंदरुस्त बातचीत में न सिर्फ सुनना अनिवार्य है वरन बोलना भी अनिवार्य है. प्राथना का अर्थ है परमेश्वर से किसी भी बात के लिए और हर बात के लिए बात करना. वह हमारा नया पिता है. और वह आप से सुनना चाहता है. आप कैसे प्राथना कर सकते है? आप किस बात के विषय में प्राथना कर सकते है? क्या होगा यदि मुझे उसको सुनने में परेशानी है?
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जब आप मसीही बन जाते है, आप परमेश्वर के विषय में कुछ बातों को समझने लगते है. परन्तु क्या आप जानते थे कि वह सब कुछ जानता है? वह हर एक जगह पर विराजमान है? वह सर्व शक्तिशाली है? तो फिर हम परमेश्वर के पूर्ण ज्ञान का क्या प्रतिउत्तर दे सकते है? आराधना क्या है? हम परमेश्वर के विषय में जो जानते है उसका क्या प्रतिउत्तर दें? सैक्शन १ में आयत यशायाह ५९:९ दी गयी और जो कि ५५:९ होनी चाहिए)
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यीशु इतिहास के सब से जाने माने व्यक्ति है. उनका संसार के इतिहास ऊपर प्रभाव किसी भी और अगुवे, दर्शनशास्र और राजनीतक लहर से ज्यादा रहा है. बहुत सारे लोग नाम से तो परिचित हैं, परन्तु वह है कौन? उसने अपने विषय में क्या कहा? उसके चेलों ने उसके विषय में क्या कहा? और उन प्रश्नों के उत्तरों में क्या समानता पाई जाती है?
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यीशु जब इस पृथ्वी पर थे उन्होंने बहुत से काम किये, परन्तु उनमें से सब से महत्वपूर्ण था उनकी क्रूस के ऊपर मृत्यु. परन्तु वास्तव में क्या हुआ था? क्या प्राप्त किया गया? इससे बाइबिल का क्या अर्थ है जब वह यीशु को “परमेश्वर के मेमने” के रूप में घोषित करती है? क्या ऐसा कुछ है जो मेरी उसकी मृत्यु की महत्ता को समझने में सहायता क्र सके? क्या मुझे इसके विषय में लगातार याद करना पड़ेगा?
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मसीही एकेश्वरवादी (एक ही परमेश्वर को मानने वाले) होते है; हम एक परमेश्वर पर विश्वास करते है. परन्तु हम त्रिएकता पर भी विश्वास करते है; हम त्रिएकता के तीन व्यक्तिओं पर विश्वास करते है – पिता परमेश्वर, पुत्र परमेश्वर और पवित्र आत्मा परमेश्वर. त्रिएकता का तीसरा व्यक्ति कौन है? वह वास्तव में करता क्या है? उसकी मेरे जीवन में प्रतिदिन क्या भूमिका है? पवित्र आत्मा से भरे होना और उसकी अगुवाई में चलने का क्या अर्थ है? क्या मुझे कुछ करने की आवश्यकता है, या वही सभ कार्य करता है? हम कहाँ होते यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य न होता?
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जब आप एक मसीही बन गए, तो आप ने परमेश्वर के साथ चलना शुरू क्र दिया. यह प्रतिदिन का काम था जिसमे पाप की आपके जीवन से पकड़ कम होती गयी और आप और ज्यादा यीशु जैसे बनते गए. परन्तु कुछ दिन दुसरे दिनों से भिन्न होते है, विशेष तौर पर जब कठिन बातें आप के जीवन में होती है. यह बुरी बातें क्यों होती है? क्या मैं परमेश्वर से कुछ रख सकता हूँ यदि इससे मेरी सहायता हो सके कि मैं पीड़ा से बच सकूं? जब मैं पाप को अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में आने की अनुमति देता हूँ, तो क्या इसके कुछ परिणाम होते है? इसका क्या अर्थ है कि यीशु “मुक्तिदाता” और “प्रभु” है?
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जब हम परमेश्वर की संतान बन गए तो हम एक समय पर एक चेले बन गए, जैसे नये परिवार के एक सदस्य, जिसमे एक न्य पिता है और नये भाई है और बहनें है और एक नया घर है. मैं इन लोगों से कैसे सबंध बनाकर रखूं? क्या मुझे उनके साथ समय व्यतीत करना चाहिए? क्या यह आसान काम है या कठिन काम है? प्राचीन कलीसिया इसे समझने में मेरी कैसे सहायता करती है? मेरा परमेश्वर के प्रति प्रेम अपने आप को दूसरों के सामने कैसे दिखता है?
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बदलाव जो आपके जीवन में आ रहा है. “परिवर्तन” का अर्थ है कि आप एक बात से दूसरी बात की और बदल गए है. आप के विषय में आप यीशु के शिष्य नहीं थे और अब आप उसके शिष्य बन गए है. इस का यह भी अर्थ है कि परमेश्वर अब आपके जीवन में काम कर रहा है, उसने आपको और भी ज्यादा यीशु जैसा बनाना शुरू क्र दिया है. क्या यह आपको आश्चर्यचकित करता है? वास्तव में क्या हुआ जब आप मसीही बने? यीशु के चेले के रूप में यह जो नया जीवन है यह देखने में कैसा लगता है? क्या मेरा जीवन अपने आप बदल गया?
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चेलों को और चेले बनाने चाहिए. यह आपके जीवन का सब से आनंदमयी अनुभव होगा जब आप दूसरों को बताते है कि कैसे परमेश्वर ने आप को जीवत किया, और वह आपके मित्रों, पड़ोसियों और दूसरों के लिए भी ऐसा ही करेगा. यह एक डरा देने वाला काम नहीं है, यह उन लोगों के लिए बहुत ही स्वभाविक है जो बदल गए है और बदले हुए जीवन व्यतीत क्र रहें है. लोग आपका प्रतिउत्तर कैसे देंगे? आपकी व्यक्तिगत गवाही क्या है? मैं लोगों को कैसे बता सकता हूँ कि वह यीशु के चेले बन सकते है? क्या होगा यदि वह मुझे पसंद नहीं करते है?
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हमारा १२ सप्ताह का पाठ्यक्रम छात्रों का ध्यान सही दिशा में लगाता है और यह परिपक्व विश्वासियों को उत्साहित करता है कि वह उन्हें शिक्षा दें. एक सप्ताह में, छात्र बाइबिल के वचनों के साथ बातचीत करता है और उसे उत्साहित किया जाता है कि वह प्रतेक दिन लिखना, प्रार्थना करना और बाइबिल के पदों को याद करना शुरू करें. उसके पश्चात छात्र और शिक्षिक ३० मिनट के सन्देश को अध्यन करने वाले नोट्स जो उन्हें प्रदान किये गए हैं, के साथ सुनते हैं, वह एक साथ विचार करने वाले प्रश्नों पर कार्य करते हैं और उसके उपरांत उनके पास दो दिन होते हैं कि जो उन्होंने सीखा है, उसके ऊपर वह विचार कर सकें. (7:40)